Navaratri Puja Vidhi-Vidhaan
शरद्काले महापूजा कियते या च वार्षिकी । तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्ति-समन्वितः ।। सर्व बाधा विनिर्मुक्तों धन धान्य समन्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ।। मार्कण्डेय पुराण में स्पष्टतः लिखा हुआ है कि देवी द्वारा संसार के सभी मनुष्यो को माँ भगवती दुर्गा का आशीर्वचन है कि शरद नवरात्रि में देवी की पूजा श्रद्धा,भक्तिपूर्वक सम्पन्न करने पर साधक (मनुष्य) की समस्त विघ्न बाधाओं का नाश हो जाएगा। आइये, इस नवरात्रि में श्रद्धा भक्ति सहित देवी के तेजस्वी रूप की साधना सम्पन्न करें ताकि हमारे जीवन से भी जड़ता और विघ्न रूपी बाधाएं समाप्त हो जाएं। हे जगजननी माँ दुर्गा ! मुझे शौर्य प्रदान करो, मेरी जड़ता मोह और संशय को समाप्त करो, मेरे जीवन के अंधकार को समाप्त कर ऊर्जा से जीवन्त करो। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नवीनता से भरी नौ रातें हैं। नवरात्रि प्रकृति द्वारा एक विशेष उपहार है सभी भक्तो व जन-साधारण के लिए | इस विशेष घडी मे अपने भीतर स्थित शक्ति से, सम्पर्क स्थापित करके नवीनीकरण करने का, साक्षात स्वरूप देवी दुर्गा हैं| दुर्गा दुर्गर्तिशमनी दुर्गापद्विनिवारणी दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाविनी दुर्गनाशिनी साधकों और भक्तों की प्रार्थना को स्वीकार कर करुणामयी माँ देवी दुर्गा उनकी समस्त बाधाओं का संहार कर देती हैं। देवी दुर्गा - शत्रु रूपी दुर्गुण, दोष, रोग, विकारों और मोह का दमन करती हैं। नवरात्र के नौ दिन जब साधक अनुशासन में बंधकर, सात्विक आहार ग्रहण करके साधना और पूजन सम्पन्न करता है, तब वह मन में बैठे भय, मोह, लोभ और मद का संहार करता है। जब मन मे बैठे दोषो का शमन होता है, तब शक्ति का स्वतः नव संचार होता है, इसी को नवरात्रि की नवीनता कहा गया है| अब मन में प्रश्न यह उठता है कि नवरात्र में रात में ही शक्ति पुनर्जाग्रत क्यों होती? ये कार्य दिन में क्यों सम्पन्न नहीं हो सकता है? इसका उत्तर गीता में श्रीकृष्ण ने दिया है। या निशा सर्वभूतानां तस्य जागर्ति संयमी। जब मोह में ग्रस्त मनुष्य निद्रा में रात में सोते हैं, उस समय संयमी जागता है। उनके दिन, संसार के कार्यों को पूर्ण करने में व्यतीत होते हैं और रात्रि के एकान्त में साधक देवी दुर्गा का सब प्रकार के व्यवधानों से निवृत्त होकर एकान्त भाव से साधना करते हैं, तब उनके मन में ऊर्जा का संचार होता है। क्योंकि शक्ति का स्रोत तो देवी दुर्गा ही हैं। एक तरह से देखा जाए तो रात में की गई साधना मां और सन्तान के बीच दीन-दुनिया की समस्त समस्याओं से परे जाकर की गई प्रार्थना है, और संतान अगर पूरे मन से मां को पुकारें और मां न सुनें ऐसा हो ही नहीं सकता | दो विशेष नवरात्रो को छोर, दो गुप्त नवरात्र भी होते है, जिसका आगमन माघ और आषाढ़ माह मे होता है | यु तो इन नवरात्रों पर विशेष लघु प्रयोग भी होते है, परन्तु परिस्थिती को ध्यान रख गुरु आदेश से साधना या प्रयोग को सम्पन्न करना लाभकारी माना गया है | || विद्युद्दाम समप्रभां पशुपति स्कन्धस्थितां भीषणां कन्याभिः करवाल खेट विशिखां हस्ताभिरासेवितां || || हस्ते श्वक्रगदासी खेट विशिखां चापं गुणं तर्जनीं विभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गा त्रिनेत्रां भजे || भगवती दुर्गा (जगदम्बा) के कई स्वरुप है, कई चिंतन है, कई विचार और धारणाए है| ऐसा कई ग्रंथो और पुराणों मे पढ़ने को प्राप्त होता है की आदिशक्ति का अवतरण (प्रकट) तब हुआ जब राक्षसों ने देवताओ पर कड़ा प्रहार करते हुए उनसे विजयी होने लगे, तभी सभी देवता अपनी शक्ति को एक कर, जिस शक्ति का आवाहन किया,उस शक्ति पुंज से जो शक्ति प्रकट हुई वह जगदम्बा कहलायी, जिनकी आठ भुजाये, सिंह पर सवार, अद्भुत तेज और शस्त्रों से सुसज्जित होकर, हुंकार भर्ती हुई शत्रुओ के संहार को अग्रसर होती हुई और देवताओ की सर्व प्रकार से रक्षा करने वाली, माँ दुर्गा कहलायी| भगवती दुर्गा के तीन स्वरुप मुख्य तौर पर प्रसिद्ध है - महाकाली, महालक्ष्मी, व महासरवती जो अपने भक्तो के शत्रुओ पर प्रहार कर, अपने भक्तो को धन-वैभव व सद्धबुद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती है | जो अपने आप में ही श्रेष्ठ और अद्वितीय हैं ऐसी मूर्ति, ऐसे शक्ति को देखकर देवताओं ने हर्ष तो अनुभव किया ही, उन्हें यह भी विश्वास हुआ कि आने वाले समय में मानव जाति के कल्याण के लिए भक्तों और साधकों की समस्याओं को दूर करने के लिए इससे श्रेष्ठ और कोई शक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि दुर्गा ही एकमात्र शक्ति है, जो प्रहार करने में भी समर्थ है, जो पालन करने में भी समर्थ है, जो उत्पत्ति करने भी समर्थ है, जो शत्रुओं का संहार करने में काल स्वरूप है, तो भक्तों की रक्षा करने और सहयोग करने में मातृ स्वरूप है। इनकी आराधना इनका चिन्तन इनकी धारणा और विचार अपने आप में जीवन का एक सौभाग्य है, जीवन की एक अलौकिक शक्ति है। भगवती दुर्गा, शक्ति का शाश्वत स्वरूप है। दुर्गा शक्ति से सम्बन्धित अनेक कथाएं एवं विचार पढ़ने, सुनने में आते है। ऐसी ही कथाएं है – प्रथम विचार है |मार्कण्डेय अद्वितीय ऋषि हुए -उन्होंने “मार्कण्डेय पुराण” में"भगवती दुर्गा” के सम्पूर्ण स्वरूप का चिन्तन किया, विचार किया कि किस प्रकार से भगवती जगदम्बा को प्रसन्न किया जाए, उनसे सहयोग लेने के लिए किस प्रकार से प्रयत्न किया जाये? इसका संक्षिप्त वर्णन उन्होंने अपने मार्कण्डेय ग्रंथ में लिखा -कि जो साधक दृढ़ निश्चय के साथ नवार्ण मंत्र के द्वारा दुर्गा को सिद्ध (दर्शन) कर लेता है, साधता है, उसकी आराधना करता है, उसे अपने हृदय में स्थापित करता है वह निश्चय ही शिव का प्रिय बन जाता है। ऐसा व्यक्ति त्रैलोक्य में विजय प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उसके जीवन में किसी प्रकार का अभाव परेशानी, दुःख -तकलीफ ज्यादा समय तक टिके नहीं सकते, वह निर्भीक होकर विचरण करने में समर्थ बन पाता है। सैकड़ों देवताओं की साधना या अराधना करने की अपेक्षा मात्र जगदम्बा की साधना करने से भी समस्त देवताओं की आराधना सम्पन्न हो जाती है क्योंकि भगवती दुर्गा तो समस्त देवताओं के तेजस्वी रूप का पुंज है और इसीलिए शास्त्रों में दुर्गा को जीवन की पूर्णता माना गया है, जीवन की श्रेष्ठता और जीवन की अद्वितीय शक्ति माना गया है। जो साधक दुर्गा को छोड़कर अन्य देवी-देवताओं की साधना में समय व्यतीत करता है वह ठीक वैसा ही जैसे जड़ में पानी न देकर पत्तों और डालियों को सींचना। पौधे का लहलहाना तो जड़ में पानी देने से ही सम्भव है, ठीक इसी प्रकार जीवन को पूर्ण निर्भीक और निश्चिन्त बना देने की क्रिया तो ‘दुर्गा साधना” से ही सम्भव है। जो जगदम्बा की आराधना सम्पन्न कर लेता है, जिसे जगदम्बा को प्रसन्न करने की क्रिया ज्ञात है, उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अभाव रह ही कैसे सकता हैं ? दूसरा विचार इस प्रकार है:- आद्य शंकराचार्य केवल निर्गुण-निराकार अद्वैत परब्रह्म के उपासक थे। एक बार वे काशी घाट पधारे तो वहां उन्हें अतिसार हो गया। बार-बार शौच जाना पड़ता था, इससे वे अत्यन्त परेशान हो गये। वे शौच करके एक स्थान पर बैठे थे, की उसी समय उनपर कृपा करने के लिए माँ भगवती अन्नपूर्णा एक गोपी के रूप मे प्रकट हुई, एक बहुत बड़ा दही का पात्र लिये वहां आकर बैठ गयी। कुछ देर के पश्चात् देवी ने कहा- 'स्वामी जी! मेरे इस घड़े को उठवा दीजिये | स्वामी जी ने कहा- 'मां! मुझमें शक्ति नहीं है, मैं उठवाने में असमर्थ हूं। मां ने कहा - 'तुमने शक्ति की उपासना की होती, तब शक्ति आती। शक्ति की उपासना के बिना भला शक्ति कैसे आ सकती है?' यह सुनकर शंकराचार्य की आंखें 'खुल गयीं। उन्होंने शक्ति की स्तुति में स्तोत्रों की कई रचना की । शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित चार पीठ हैं। चारों में ही चार शक्ति पीठ हैं। उन्होंने भगवती दक्षिणामूर्ति की स्तुति में बहुत सुन्दर स्तोत्र रचे | शक्ति तो शौर्य, पराक्रम, बल, बुद्धि, ज्ञान, विवेक, लक्ष्मी, चेतना का स्वरूप है। यह शक्ति तत्व साधना से आती है, लेकिन साधना के साथ-साथ यदि हम वास्तव में स्वयं शक्तिमान बनना चाहते हैं तो हमारे भीतर शौर्य का भाव होना चाहिए। शौर्य और बल उन्हीं को प्राप्त होता है जो संकल्पवान होते हैं, जो दृढ़ होते है, जो अपने लक्ष्य को निर्धारित कर कार्य करते हैं। ये ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार कुए का मेंढक, कुए को समुद्र समझ बैठता है, लेकिन शक्ति तत्व को धारण करने का इच्छुक साधक अपने जीवन में जिस बात का निश्चय कर लेता है उसके लिये वह निरन्तर क्रियाशील रहता है। यदि आपके जीवन में जिद्द नहीं है, दृढ़ निश्चय नहीं है तो जीवन की नैया बिना पतवार के संसार समुद्र में डोल रही है । किसके जीवन में तूफान नहीं आता, बाधा नहीं आतीं ? यदि आप में संघर्ष और दृढ़ निश्चय का भाव है, आप शक्ति के उपासक हैं तो आप निश्चय ही अपने लक्ष्य को भेदते हुए विजयी होंगे और माँ जगजननी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे | जिज्ञासा होगी कि यह साधना कैसे की जाये, इसके लिए, मैं सर्वमान्य साधना बता रहा हु रहा हूँ, जो कि किसी भी साधक के लिए अनुकूल व् हितकारी है, जिससे सभी मनोरथ पूर्ण होते है | कलौ चंडी विनायकौ—-इस वचन के अनुसार कलियुग में देवी चंडिका (दुर्गा) की पूजा और साधना अत्यंत सिद्धिदायक बताई गई है। देवी की यह पूजा उनके मूल मंत्र (नवार्ण मंत्र) के जाप से शीघ्र एवं निश्चित रूप से सिद्ध होती है। भगवती दुर्गा की साधना में नवार्ण मंत्र का अत्यन्त महत्व है। नवार्ण मंत्र के बारे में तो बहुत लोग जानते परन्तु इसकी वास्तिक विधि-विधान सहित पूजा -अर्चना, साधना बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है| नवार्ण साधना- अर्थात् नव अक्षर होने से इसका नाम 'नवार्ण' पड़ा और इसका प्रत्येक अक्षर अपने आप में तेजस्वी और शक्तिशाली है। परन्तु गुप्त चामुण्डा तंत्र में बताया गया हैं, कि नवार्ण मंत्र से नव अक्षरों को सिद्ध करने पर नौ लाभ तुरन्त अनुभव किये जा सकते हैं; या नौ बीज तथा उनसे संबंधित फल प्राप्ति इस प्रकार हैं 1. ऐं यह बीज नवार्ण मंत्र का पहला और सरस्वती माता का बीज मंत्र है, इसको सिद्ध करने पर स्मरण शक्ति तीव्र होती है, यदि बालक इस साधना को या इस बीज मंत्र का उच्चारण करे तो शीघ्र ही व परीक्षा मे सफलता प्राप्त करता है| इस मंत्र के अनेको लाभ है जैसे ; सर दर्द, माइग्रेन, आधा-शीशी दर्द,आदि विकारो मे लाभ पहुँचता है | इस मंत्र के निरन्तर उच्चारण करने से कई मानसिक व्याधिया स्वतः ठीक हो जाती हैं, यही बीज मंत्र वाणी, स्वर विज्ञान, विद्या,अच्छा वक्ता बनने में, वाणी के द्वारा लोगों को प्रभावित करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। 2. श्रीं ये एक दिव्य लक्ष्मी बीज मंत्र है, जो कि सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है। इस बीज मंत्र की साधना करने से या इसका मंत्रका जप करने से दरिद्रता दूर भाग जाती है, निरन्तर आर्थिक उन्नति होने लगती है और धन-लाभ (अर्थ) संबंधी रुके हुए काम ठीक हो जाते हैं। जो साधक प्रातःकाल, निरन्तर केवल इसी बीज मंत्र का विधिपूर्वक उच्चारण करता है, उसका व्यापार बढ़ने लगता है, आर्थिक स्रोत मजबूत होते हैं और व्यापारी वर्ग के लिए नित्य धन-अवसर बने रहते है तथा वही नौकरी पेशा वर्ग या नौकरी ढूंढ रहे लोगो के लिए ये मंत्र अपने आप मे किसी चमत्कार से कम नहीं तथा किसी न किसी तरह धन प्राप्ति के विशेष अवसर बन जाते हैं। 3. क्लीं क्लीं बीज मंत्र जो महाकाली का बीज मंत्र है, शत्रुओं का संहार करने, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, मुकदमे में सफलता प्राप्त करने और मन के ना-ना विकारों, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि पर नियंत्रण प्राप्त करने मे सहायक है, बल्कि कलियुग मे यह शत्रु पक्ष से बचाव के लिए महत्वपूर्ण बीज मंत्र भी है| इस बीज मंत्र का उच्चारण कर कोर्ट कचहरी के मामलो मे जहा लाभ मिलता है , वही शत्रु पक्ष से चल रहे वाद-विवादों मे विजय भी प्राप्त होती है |इस बीज मंत्र के जपने से कई प्रकार के तंत्र प्रयोगो मे साधक का बचाव व साधक को शक्ति प्राप्त होती है| काली को प्रसन्न करने और उसके प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिए यह अपने आप में सिद्ध बीज मंत्र है। 4. चा “चा” बीज मंत्र ‘सौभाग्य’ बीज मंत्र है, इसके स्वर से किसी विशेष तरंग व ध्वनि से, शास्त्रों मे इसकी महत्वता को बताया गया | यह गृहस्थ प्राणियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं | जहा एक और इस बीज मंत्र को पढ़ने से (नियमित मंत्र-जाप) सौभाग्य मे वृद्धि होती है, वही पति-पत्नी के आपसी सम्बन्ध ओर उनके स्वास्थ सम्बन्धी बीमारियों मे लाभकारी भी है पति की उन्नति, पति के स्वास्थ्य और पति की पूर्ण आयु के लिए यह अपने आप में अद्वितीय बीज मंत्र है। इसी प्रकार यदि पत्नी रोग ग्रस्त हो, तो इस बीज मंत्र (अक्षर) का निरन्तर जप करने से या पत्नी को इस बीज मंत्र से, सिद्ध करके जल पिलाने से उसके स्वास्थ्य में शीघ्र आश्चर्यजनक परिणाम देखने को प्राप्त होते है, गृहस्थ जीवन को रोगमुक्त बनाने मे ये बीज मंत्र अत्यंत लाभदायक है। 5. मुं यह एक दिव्य 'आत्म' बीज मंत्र है, आत्मा की उन्नति, कुण्डलिनी जागरण हेतु , जीवन को पूर्णता की ओर अग्रसर करने हेतु और अन्त में ब्रह्म से पूर्ण साक्षात्कार के लिए यह बीज मंत्र सर्वाधिक उपयुक्त एवं अद्वितीय है। उच्च कोटि के संन्यासी निरन्तर इस मंत्र का जप करते रहते है, अपने जीवन को पूर्णता प्रदान करते हैं, जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र का उच्चारण करता रहता है, उसकी कुण्डलिनी शीघ्र ही जाग्रत हो होने लगती है| 6. डॉ यह सन्तान सुख की प्राप्ति हेतु बीज मंत्र है और भगवती दुर्गा का सर्वाधिक प्रिय बीज मंत्र है। यदि संतान उत्पन्न होने मे किसी भी तरह की बाधा आ रही हो या पुत्र उत्पन्न न हो रहा हो अथवा संतान मानसिक रूप से बीमार हो, तो, इस बीज मंत्र की सिद्धि करने से अनुकूलता प्राप्त व विशेष चमत्कारी परिणाम देखने को प्राप्त होते है। संतान के स्वास्थ्य और उसकी दीर्घायु के लिए भी इसी बीज मंत्र का उपयोग किया जाता है। 7. यै यह भाग्योदय बीज मंत्र है और मानव जीवन में इस बीज का अत्यधिक महत्व है, यदि दुर्भाग्य किसी व्यक्ति का पीछा ही नहीं छोर रहा हो, पग-पग पर बाधाएं आ रही हों, कोई काम भली प्रकार से सम्पन्न नहीं हो रहा हो तो इस बीज मंत्र का विधिवत जप करना चाहिए गुरु आज्ञा लेकर, जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र का जप करता रहता है, उसका भाग्योदय शीघ्र हो जाता और वह व्यक्ति जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेता है। 8. वि ये बीज मंत्र सम्मान, प्रसिद्धि, उच्चता, श्रेष्ठता और सफलता का बीज मंत्र है। सभी तरह की प्रतियोगिताओं व किसी प्रकार के पुरस्कार प्राप्त करने, समाज में सम्मान और यश प्राप्त करने, राज्य में तरक्की और सफलता प्राप्त करने के लिए इस बीज मंत्र का उपयोग किया जाता है। जो साधक निरन्तर इस बीज मंत्र का विधि- पूर्वक प्रयोग करता है, या इसकी साधना करता है, वह निश्चय ही राज्य सम्मान एवं राज्य उन्नति प्राप्त करने में सफलता पाता है | 9. च्चे ऋषि-मुनियो, देवता, व सभी मनुष्यो के मनोरथो को पूर्ण करने मे ये बीज मंत्र अपने आप मे सक्षम और संपूर्णता लिए हुए है | इसका जप व श्रवण दोनों ही लाभकारी माना गया है, फिर भी विधि-पूर्वक मंत्र जप को अधिक महत्वता दी गई है| इसको सिद्ध करने पर-भाग्य परिवर्तन, सुख-सौभाग्य, संतान प्राप्ति व विदेश सम्बन्धी मामलो मे लाभकारी माना गया है | दुर्गा नवार्ण मंत्र ये सभी वर्ण (प्रत्येक बीज) मंत्र को एक कर, जो महा मंत्र बनता है, उसे नवार्ण मंत्र कहा जाता है | नवार्ण मंत्र साधना के विधि-विधान के लिए संपर्क करे : https://www.gemsvedicmantra.com